कांग्रेस को मंथन और चिंतन करना चाहिए कि देश सर्वोपरि है या एक व्यक्ति विशेष का निजी स्वार्थ : बोधराज सीकरी
राहुल गांधी का यह कहना कि इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग सेक्युलर है, एक हास्यास्पद बयान है क्योंकि अगर यह संस्था सेक्युलर है तो विश्व में कोई भी संस्था कम्यूनल नहीं है। जो संस्था जिन्ना की समर्थक है, जिस संस्था के कारण धर्म के आधार पर देश का विभाजन करवाया गया, जिस बँटवारे के कारण हज़ारों बहने विधवा हुई, हज़ारों बच्चे अनाथ हुए, हज़ारों महिलाओं की इज़्ज़त लूटी गई, हज़ारों हमारे बुजुर्ग मारे गए, हज़ारों लोग बेघर हुए, अगर वह संस्था सेक्युलर है तो कम्यूनल कौन सी संस्था है।
हिंदुस्तान के टुकड़े होने का और पाकिस्तान का गठन होने का यदि कोई उत्तरदायी है तो यह संस्था ही है। दो वर्ष पूर्व हमारे प्रधान मंत्री ने विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस आयोजन करने का फ़ैसला लिया ताकि हमारे बुजुर्गों के ज़ख्मों पर मरहम लग सके परंतु राहुल गांधी के इस ग़ैर ज़िम्मेदाराना बयान ने हमारे ज़ख्मों को फिर से हरा कर दिया है।
अफ़सोस इस बात का है कि इस संस्था ने कांग्रेस के साथ सौदेबाज़ी कर लाखों लोगों को दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर किया। यह वो पार्टी है जो तीन तलाक़ के फ़ैसले का पुरज़ोर विरोध करती है। फिर तो सिमी जैसी संस्था को भी राहुल गांधी को सेक्युलर घोषित करना चाहिए। यह लिखते हुए दर्द महसूस हो रहा है कि जिस पार्टी के जुलूस में पाकिस्तान के नारे लगाए जाते हैं, जिनके जुलूस में पाकिस्तान के झंडे को खुलेआम लहराया जाता है, ऐसी ऑर्गनाइज़ेशन को सेक्युलर ठहराया जा रहा है। यह अलगाववादियों का खेल नहीं तो क्या है।
अचम्भा इस बात का है कि जब भी राहुल विदेश जाते है तो अचानक कैसे जिन्ना का जिन उनमें घुस जाता है और वो देश की मर्यादा को भूल जाते हैं और मेरे हिसाब से तो ये देशद्रोह है।
सभी को मालूम ही होगा कि इस संस्था का कांग्रेस के साथ केरल में गठबंधन है जिसके कारण राहुल केरल से जीते थे और लगता है वो इस प्रकार की बयानबाज़ी करके अपना क़र्ज़ा उतार रहे हैं।
यू.पी.ए. की सरकार के दौरान एक बिल लाने का प्रयास किया गया था जिसके अनुसार अगर दंगे होंगे तो हिंदू दोषी माना जाएगा और मुस्लिम विक्टिम माना जाएगा। अगर यह बिल लागू हो जाता तो दंगे होने के कारण हिंदू को जेल जाना पड़ता। यही कांग्रेस की असली मानसिकता है।
सर्वाधिक लोगों को मालूम है कि इस माह भारत के प्रधान मंत्री स्टेट विज़िट पर यू.एस.ए. जा रहे हैं। वहाँ की सरकार आँखे बिछा कर प्रतीक्षा कर रही है जो राहुल गांधी पचा नहीं पा रहे हैं। इस बार तो पी.एम. संयुक्त हाउस को भी सम्बोधित करेंगे। एक देश का प्रधान मंत्री मोदी जी के पाँव छूता है, दूसरे देश का प्रधान मंत्री उन्हें बॉस कहकर पुकारता है और यू.एस. प्रेसिडेंट उनका ऑटोग्राफ़ माँगता है।
इन हालात में राहुल गांधी मोदी जी के पहुँचने से पहले उनकी निंदा करना, सरकारी संस्थाओं के ख़िलाफ़ बोलना, ताकि पूरे विश्व पर उसका असर पड़े परंतु दुर्भाग्य है राहुल गांधी का कि पूरा विश्व नमन करता है हमारे मोदी जी को। राहुल गांधी ने यू.एस. में प्रत्यक्ष रूप में और लंदन में परोक्ष रूप में अपना नकारात्मक एजेंडा चलाया परंतु सफल नहीं हुए ना होंगे। विडम्बना इस बात की है कि उनके अपनी विचारधारा वाले पित्रोदा कहते हैं कि देश के पी.एम. हर जगह सम्मान के हक़दार हैं। यह दो बातें एक दूसरे के विपरीत नहीं है क्या?
कांग्रेस को मंथन और चिंतन करना चाहिए कि देश सर्वोपरि है या एक व्यक्ति विशेष का निजी स्वार्थ।
विडम्बना इस बात की भी है कि राहुल गांधी ने 2004 से 2023 तक 19 साल में कोई ऐसा काम नहीं किया जिसको वो अपनी उपलब्धि मानकर विदेश में प्रचार कर सके। उनके पास नकारात्मकता के सिवा कुछ नहीं है।
व्यक्ति की दुकान में जो होता है वो व्यक्ति वही सामान बेचता है। राहुल के पास मोदी विरोधी, भाजपा विरोधी, आर.एस.एस. विरोधी, हिंदुत्व विरोधी विचार धारा के सिवा कुछ नहीं है। इसलिय उनकी इस प्रकार की प्रवृत्ति बन गई है।
जनता को मंथन करना चाहिए कि देश सर्वोपरि है या व्यक्ति विशेष का निजी स्वार्थ।
लेखक ने यह लेख विभाजन के दर्द से प्रेरित होकर निजी कपैसिटी में लिखा है क्योंकि हमारे बुजुर्गों ने विभाजन विभीषिका को सहा है। उन बुजुर्गों की आत्मा कभी भी अलगाववादियों की शक्तियों को माफ़ नहीं करेगी। क्योंकि हमारे लिए राष्ट्र सर्वोपरि है।